शनिवार, 21 जून 2014
Gurukshetra Mantra
4:28 am
No comments
॥ ॐ श्रीदत्तगुरवे नमः॥
श्रीगुरुक्षेत्र-बीजमन्त्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे-सर्वबाधाप्रशमनं-श्रीगु रुक्षेत्रम्|
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे-सर्वपापप्रशमनं-श्रीगुरु क्षेत्रम्|
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे-सर्वकोपप्रशमनं-श्रीगुरु क्षेत्रम्|
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे-त्रिविक्रमनिलयं-श्रीगु रुक्षेत्रम्|
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे-सर्वसमर्थं सर्वार्थसमर्थं-श्रीगुरुक्षेत् रम्॥
श्रीगुरुक्षेत्र-अंकुरमन्त्र
ॐ रामात्मा-श्रीदत्तात्रेयाय नम:|
ॐ रामप्राण-श्रीहनुमंताय नम:|
ॐ रामवरदायिनी-श्रीमहिषासुरमर्दि न्यै नम:|
ॐ रामनामतनु-श्रीअनिरुद्धाय नम:॥
श्रीगुरुक्षेत्र-उन्मीलन मन्त्र (कलिकापुष्पफलमन्त्र)
ॐ मानवजीवात्मा-उद्धारक-श्रीरा मचन्द्राय नम:|
ॐ मानवप्राणरक्षक-श्रीहनुमंताय नम:|
ॐ मानववरदायिनी-श्रीआह्लादिन्यै नम:|
ॐ मानवमन:सामर्थ्यदाता-श्रीअनिरु द्धाय नम:॥
गुरुवार, 19 जून 2014
Gurucharitra adhyay 18
3:41 am
No comments
श्रीगुरूचरित्र अध्याय (१८) अठरावा
श्री गणेशाय नमः I श्री सरस्वत्यै नमः I श्री गुरुभ्यो नमः I
जय जया सिद्धमुनि I तूं तारक भवार्णी I
सुधारस आमुचे श्रवणीं I पूर्ण केला दातारा II १ II
श्री गणेशाय नमः I श्री सरस्वत्यै नमः I श्री गुरुभ्यो नमः I
जय जया सिद्धमुनि I तूं तारक भवार्णी I
सुधारस आमुचे श्रवणीं I पूर्ण केला दातारा II १ II
गुरुचरित्र कामधेनु I ऐकतां न धाये माझें मन I
कांक्षीत होतें अंतःकरण I कथामृत ऐकावया II २ II
ध्यान लागलें श्रीगुरूचरणीं I तृप्ति नव्हे अंतःकरणीं I
कथामृत संजीवनी I आणिक निरोपावें दातारा II ३ II
Gurucharitra Adhyay 14
3:33 am
1 comment
श्रीगुरुचरित्र अध्याय १४
श्री गणेशाय नमः I श्रीसरस्वत्यै नमः I श्रीगुरुभ्यो नमः I
नामधारक शिष्य देखा I विनवी सिद्धासी कवतुका I
प्रश्न करी अतिविशेखा I एकचित्ते परियेसा II १ II
जय जया योगीश्वरा I सिद्धमूर्ति ज्ञानसागरा I
पुढील चरित्र विस्तारा I ज्ञान होय आम्हांसी II २ II
श्री गुरुचरणमास
श्री गुरुचरणमास
- डॉ. योगिंद्रसिंह जोशी
।। हरि: ॐ ।।
श्रीगुरुचरणों की महिमा भारत के सारे संतों ने बतायी है। सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह (बापु) ने प्रवचन में सन्तश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी द्वारा विरचित हनुमानचलीसा स्तोत्र के प्रारंभिक दोहे का संदर्भ देते हुए गुरुचरणमहिमा के बारे में बताया।
‘श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि...........' इस दोहे में सन्तश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी कह रहे हैं कि सद्गुरु के चरणकमलों की धूल से (सरोज = कमल) (रज = धूल) मैं अपने मनरूपी दर्पण (मन मुकुरु) को स्वच्छ, शुद्ध एवं पवित्र करके रघुवर श्रीरामचन्द्रजी के विमल यश का वर्णन करता हूँ। श्रीराम के यश का वर्णन करने से चतुर्विध पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की प्राप्ति होती है। अपने देह को बुद्धिहीन जानते हुए मैं पवनकुमार महाप्राण श्रीहनुमानजी का सुमिरन करता हूँ। हे रामदूत आंजनेय बजरंगबली हनुमानजी, कृपा करके मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान कीजिए और मेरे क्लेश एवं विकारों को समूल नष्ट कर दीजिए।
बापु ने इस दोहे का संदर्भ देते हुए कहा कि धूल यदि किसी वस्तु पर पड जाती है, तो वह उसे मटमैला, गन्दा, खराब कर देती है। केवल सद्गुरु के चरणकमलों की धूल ही ऐसी है, जिससे मेरा मनरूपी दर्पण स्वच्छ, शुद्ध एवं पवित्र हो जाता है, निखर जाता है। यही है सद्गुरु का अद्भुत, अचिन्त्य सामर्थ्य, जिसके बारे में सन्तश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी बता रहे हैं। सन्तश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी ने यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहस्य हमें इस दोहे में बताया है।
मंगलवार, 17 जून 2014
गुरुपूर्णिमा उत्सव का महत्व
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:।गुरुरेव परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नम:॥
श्रीगुरुगीता में प्रस्तुत श्लोक द्वारा गुरुमहिमा का वर्णन किया गया है। वटपूर्णिमा से गुरुपूर्णिमा इस संपूर्ण महीने की कालावधि को ‘श्रीगुरुचरणमास’ कहा जाता है। गुरुपूर्णिमा यह सद्गुरु के ऋणों का स्मरण करके सद्गुरुचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन होता है। गुरुपूर्णिमा के पर्व पर सद्गुरु को गुरुदक्षिणा देने की प्रथा (रिवाज) हैं। परन्तु सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध तो कभी भी किसी से भी किसी भी प्रकार का भेट स्वीकार नहीं करते।
सन १९९६ श्रद्धावान अत्यन्त आनंदपूर्वक एवं उत्साह के साथ गुरुपूर्णिमा का यह भक्तिमय उत्सव मनाते हैं ।
अनिरुध्द् चलिसा पठन |
सदस्यता लें
संदेश (Atom)