गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:.
गुरुरेव परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः.
श्रीगुरुगीता में प्रस्तुत श्लोक द्वारा गुरुमहिमा का वर्णन किया गया है। वटपूर्णिमा से गुरुपूर्णिमा इस संपूर्ण महीने की कालावधि को ‘श्रीगुरुचरणमास’ कहा जाता है। गुरुपूर्णिमा यह सद्गुरु के ऋणों का स्मरण करके सद्गुरुचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन होता है। गुरुपूर्णिमा के पर्व पर सद्गुरु को गुरुदक्षिणा देने की प्रथा (रिवाज) हैं। परन्तु सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध तो कभी भी किसी से भी किसी भी प्रकार का भेट स्वीकार नहीं करते।
सन १९९६ श्रद्धावान अत्यन्त आनंदपूर्वक एवं उत्साह के साथ गुरुपूर्णिमा का यह भक्तिमय उत्सव मनाते हैं ।
सन 1996 से श्रद्धावान अत्यंत आनंद व उत्साह से गुरुपुर्णिमा का यह भक्तिमय उत्सव मना रहें हैं। इस उत्सव के मुख्य भक्तिमय कार्यक्रम निम्नानुसार हैं:
1. परमपूज्य बापू, नंदाई व सुचितदादा का स्वागत (औक्षण) : -
साधारणतः 10:00 ते 10:15 बजे के आसपास परमपूज्य बापू, नंदाई व सुचितदादा का उत्सवस्थल पर आगमन होता है. सर्वप्रथम सद्गुरु का द्वाराचार होता है और तत्पश्चात परमपूज्य बापू, नंदाई व सुचितदादा पूजनीय श्रीनृसिंह सरस्वतीं के पादूका का पूजन व अभिषेक करते हैं।
3. श्री साईराम जप: -
परमपूज्य बापू के नित्यगुरु की पादुका, श्री पूर्वावधूत और श्री अपूर्वावधूत कुंभ इनकी स्थापना भक्तिस्तंभ पर की जाती है। परमपूज्य बापू, नंदाई व सुचितदादा तीनोंही 'रामनामवही' से बनी हुई 'इष्टिका' सिर पर धारण कर 'श्रीसाईराम जप' का उच्चारण करते हुए इस भक्तिस्तंभ की प्रदक्षिणा करतें हैं। तत्पश्चात सभी श्रद्धावान ये 'इष्टिका' सिर पर धारण कर श्रीसाईराम जप' का उच्चारण करते हुए इस जपस्तंभ की प्रदक्षिणा कर सकतें हैं।
4. श्रीत्रिविक्रमपूजन व महापूजन: -
सुबह साधारणतः 09:00 बजे से "त्रिविक्रमपूजन" व "महापूजन" की शुरूआत होती है। इसमें सभी श्रद्धावान सद्गुरुतत्त्व के प्रतीक श्री त्रिविक्रम के तीन कदमों का पूजन कर सकतें हैं। त्रिविक्रमपूजन करने से मेरे जीवन में इन सद्गुरुतत्व की कृपा, पावित्र्य, मन: सामर्थ्य और उद्धार इन तीन कदमों से आती है और त्रिविक्रम के प्रेम की छत्रछाया मेरे तथा मेरे पूरे परिवारपर धरी जाती है। श्रद्धावानों को गुरुपुर्णिमा पर सद्गुरुपूजन करने की इच्छा होती है और सद्गुरुतत्त्व के प्रतीक त्रिविक्रमपूजनाद्वारा उनकी यह इच्छा फलद्रूप होती है।
5. श्री अनिरुद्ध चलिसा: -
उत्सव के दौरान हर एक घंटे बाद 'श्रीअनिरुद्ध चलिसा' का पाठ श्रद्धावान करते हैं उसके पश्चात परमपूज्य बापू के हस्तस्पर्श के लिए श्रद्धावान उदी लाते हैं। यह सद्गुरु की हस्तस्पर्श कि हुई उदी सभी श्रद्धावान विनामूल्य प्रसाद रूप में ले जा सकतें है।
6. पालखी: -
सुवह साधारणतः 09:00 बजे से परमपूज्य सद्गुरुंके चरणमुद्राओं की पालखी शुरू होती है.. संपूर्ण दिन यह पालखी उत्सव स्थल पर जोश, उत्साह और धूमधामसे घुमाई जाती है जिसके फलस्वरूप सभी श्रद्धावान इन चरणमुद्राओं का दर्शन ले सकें।
7. श्रीअनिरुद्ध अग्निहोत्र: -
परमपूज्य बापू, नंदाई व सुचितदादा 'श्रीअनिरुद्ध अग्निहोत्र' में ऊद अर्पण करते हैं। प्रत्येक श्रद्धावान यहाँ ऊद अर्पण कर सकता है।
8. सद्गुरु दर्शन: -
सभी श्रद्धावान स्टेजपर रखी श्रीनृसिंह सरस्वतींके पादुकाओं के, श्रीगुरु दतात्रेय की मूर्ती का एवम् सद्गुरु - त्रयी के दर्शन का लाभ ले सकतें हैं। कुछ चुने हुए श्रद्धावान 'द्रां दत्तात्रेयाय नम:' इस मंत्र का जाप करते हुए दिनभर श्रीगुरु दत्तात्रेय के तसवीर के चरणों पर तुलसीपत्रे अर्पण करते हैं।
9. महाआरती: -
रातको साधारणतः 09:30 बजे महाआरती होती है, परमपूज्य बापू स्वयं श्रीगुरु दत्तात्रेय की आरती करते हैं व तत्पश्चात चुनें हुए श्रद्धावान सद्गुरु की आरती करते है। आरती के बाद श्रीअनिरुद्ध पाठ और गजर होता है। सर्व श्रद्धावान इस महाआरती व गजर मे प्रेमपूर्वक सहभागी हो सकतें है।