गुरुवार, 19 जून 2014

श्री गुरुचरणमास

  श्री गुरुचरणमास
- डॉ. योगिंद्रसिंह जोशी
 ।। हरि: ॐ ।।
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (वटपूर्णिमा) से आषाढ मास की पूर्णिमा (गुरुपूर्णिमा) तक की एक माह की अवधि को ‘श्री गुरुचरणमास’ कहा जाता है। ‘श्री गुरुचरणमास’ को बहुत ही पावन पर्व माना जाता है। यह जानकारी सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह (बापु) ने १६-०६-२०११ के प्रवचन में दी।

श्रीगुरुचरणों की महिमा भारत के सारे संतों ने बतायी है। सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह (बापु) ने प्रवचन में सन्तश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी  द्वारा विरचित हनुमानचलीसा स्तोत्र के प्रारंभिक दोहे का संदर्भ देते हुए गुरुचरणमहिमा के बारे में बताया।

‘श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि...........' इस दोहे में सन्तश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी कह रहे हैं कि सद्गुरु के चरणकमलों की धूल से  (सरोज = कमल) (रज = धूल) मैं अपने मनरूपी दर्पण (मन मुकुरु) को स्वच्छ, शुद्ध एवं पवित्र करके रघुवर श्रीरामचन्द्रजी के विमल यश का वर्णन करता हूँ। श्रीराम के यश का वर्णन करने से चतुर्विध पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की प्राप्ति होती है। अपने देह को बुद्धिहीन जानते हुए मैं पवनकुमार महाप्राण श्रीहनुमानजी का सुमिरन करता हूँ। हे रामदूत आंजनेय बजरंगबली हनुमानजी, कृपा करके मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान कीजिए और मेरे क्लेश एवं विकारों को समूल नष्ट कर दीजिए।


बापु ने इस दोहे का संदर्भ देते हुए कहा कि धूल यदि किसी वस्तु पर पड जाती है, तो वह उसे मटमैला, गन्दा, खराब कर देती है। केवल सद्गुरु के चरणकमलों की धूल ही ऐसी है, जिससे मेरा मनरूपी दर्पण स्वच्छ, शुद्ध एवं पवित्र हो जाता है, निखर जाता है। यही है सद्गुरु का अद्भुत, अचिन्त्य सामर्थ्य, जिसके बारे में सन्तश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी बता रहे हैं। सन्तश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी ने यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहस्य हमें इस दोहे में बताया है।



मन का दर्पण जब साफ़ हो जाता है, तब उसमें मेरे भीतर रहने वाले आत्माराम की छबि मुझे साफ़ साफ़ दिखायी देती है। सद्गुरु के चरण हमारे जीवन में अद्भुत, अचिन्त्य, अपरंपार लीला करके हमारा जीवन समृद्ध, सुफल एवं संपूर्ण बना सकते हैं। बस, मुझे ‘सद्गुरुचरण मेरे जीवन में सदा ही सक्रिय रहें’, यह प्रार्थना हनुमानजी से करनी चाहिए।

गुरुपूर्णिमा से एक माह पूर्व तक की अवधि मेरे जीवन में सद्गुरुचरण सक्रिय होने एवं रहने की प्रार्थना करने की अवधि मानी जाती है। इसीलिए ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (वटपूर्णिमा) से लेकर आषाढ मास की पूर्णिमा (गुरुपूर्णिमा) तक की एक माह की अवधि में यानी ‘श्री गुरुचरणमास’ में मुझे कम से एक बार १०८ बार श्रीहनुमाचलीसा का पाठ एक दिन में पूरा करना चाहिए।

गुरुचरणमास में जितना हो सके उतना अधिक से अधिक श्रीहनुमानचलीसा का पाठ करना चाहिए, साथ ही अन्य स्तोत्र-मन्त्र आदि का पाठ भी करना चाहिए। जितना अधिक से अधिक पाठ, जाप आदि कर सकते हैं, हमें करते रहना है, गिनने की भी आवश्यकता नहीं है।

इस गुरुचरणमास में हम उपासना करके रामदूत हनुमानजी के साथ हमारा नाता, जोड मजबूत बना सकते हैं और श्रीरामदूत हनुमानजी हमारा जोड प्रभु श्रीरामचन्द्रजी के साथ अटूट रूप में जोड सकते हैं। अत एव श्रीगुरुचरणमास में हमें अधिक से अधिक उपासना करके इस पर्व का लाभ उठाना चाहिए और मनरूपी दर्पण को श्रीगुरुचरणधूल से स्वच्छ, शुद्ध एवं पवित्र करके रघुवर श्रीरामचन्द्रजी के विमल यश का, चरित्र का गुणसंकीर्तन करते रहना चाहिए।
                                        

                                                             । अंबज्ञोऽस्मि ।
                                                              ।। हरि: ॐ ।।

Original Article From : 
http://ambajnosmi.blogspot.in/2014/06/guru-charana-maas.html

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